मुझे तुम्हारा भूलना याद है

Nitesh Kumar Patel
1 min readSep 29, 2023

उन लड़को के लिए जो कच्ची उम्र में घर से निकल जाते है शहरों में, कमाने के लिए। बस २-४ साल कमा के गांव आ जाऊंगा कहकर जाने वाले लड़के फिर कभी वापस नहीं आ पाते। वे त्यौहारों तो कभी घर के फंक्शन पर कभी कभार लौट आते है पर पूरी तरह नहीं लौटते। कभी जिनके शोर से गांव गूंजा करता था अब चुप चुप से रहते है। एक उम्र के बाद घर की रोटी बनते है ये लड़के- यह कविता उन विस्थापितो के लिए

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तुम्हारी महक गुलाब से मिलती है

पर तुम कभी बग़ीचे में नहीं मिलते

कब तक खोजूँ तुम्हें उन गलियों में

निकल आओ उस शहर से बाहर

चीर कर उस आवरण को

मेरा दरवाज़ा इंतिज़ार करता है

तुम्हारे धक्के का

तुम्हारी माँ की आँख में बचे आँसू

पिता का अनकहा इंतिज़ार

आस है इस प्रतीक्षा की

उस प्रेमिका के लिए

जिसे आने का वादा करके गए थे।

क्या तुम्हें अपने घर का रास्ता भी याद नहीं?

या अपना नाम

या अपना गाव

बचपन की किताबे

जिसमें शब्दों की तरह रहते थे तुम

पर मुझे सब कुछ याद है

मुझे तुम्हारा भूलना याद है।

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Nitesh Kumar Patel

The man who writes about himself and his own time is the only man who writes about all people and all time. — George Bernard Shaw