मुझे तुम्हारा भूलना याद है
उन लड़को के लिए जो कच्ची उम्र में घर से निकल जाते है शहरों में, कमाने के लिए। बस २-४ साल कमा के गांव आ जाऊंगा कहकर जाने वाले लड़के फिर कभी वापस नहीं आ पाते। वे त्यौहारों तो कभी घर के फंक्शन पर कभी कभार लौट आते है पर पूरी तरह नहीं लौटते। कभी जिनके शोर से गांव गूंजा करता था अब चुप चुप से रहते है। एक उम्र के बाद घर की रोटी बनते है ये लड़के- यह कविता उन विस्थापितो के लिए
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तुम्हारी महक गुलाब से मिलती है
पर तुम कभी बग़ीचे में नहीं मिलते
कब तक खोजूँ तुम्हें उन गलियों में
निकल आओ उस शहर से बाहर
चीर कर उस आवरण को
मेरा दरवाज़ा इंतिज़ार करता है
तुम्हारे धक्के का
तुम्हारी माँ की आँख में बचे आँसू
पिता का अनकहा इंतिज़ार
आस है इस प्रतीक्षा की
उस प्रेमिका के लिए
जिसे आने का वादा करके गए थे।
क्या तुम्हें अपने घर का रास्ता भी याद नहीं?
या अपना नाम
या अपना गाव
बचपन की किताबे
जिसमें शब्दों की तरह रहते थे तुम
पर मुझे सब कुछ याद है
मुझे तुम्हारा भूलना याद है।