धर्म, पंथ एवं दर्शन

Nitesh Kumar Patel
6 min readSep 6, 2023
गीता , तर्क एवं दर्शन का अप्रतिम उदाहरण

स्कूटी का धर्म और दर्शन-

यह एक स्कूटी है। यह आयरन और कार्बन फ्रेम की बनी है। इसमे फोर स्ट्रोक इंजन है, जिसमे पेट्रोल डालने पर संपीड़न और उतमोचन की प्रक्रिया होती है जिससे पिस्टन घूमता है। पिस्टन चक्के को चलाता है। इसके आयरन फ्रेम के ऊपर लगी गद्दी में व्यक्ति बैठता है और हैंडल के माध्यम से दिशा निर्धारित करता है।

बैठे हुए व्यक्ति को संतुलन का ज्ञान होना अनिवार्य है।वह दिन में स्कूटी को चलाये, परन्तु रात में चलाए तो हेडलाइट अवश्य ही जला ले।

यह दर्शन है।

स्कूटी एक विलक्षण देवी है। इसके अंदर ऐसी शक्ति है कि तुम उस पर बैठकर जहां चाहो जा सकते हो। प्रतिदिन स्कूटी की सफाई करो, उसका पूजन करो। इसके किए मिस्त्री को बुलाकर उसकी ट्यूनिग कराओ और उसे दान दो। स्कूटी की आलोचना करने पर एक्सीडेंट हो जाएगा, और तुम मर जाओगे।

यह धर्म है।

इसे, उसी मिस्त्री ने दर्शन पढ़कर जारी किया है कहता है कि यही तो हमारे ग्रन्थों में लिखा है। उसे पता है कि स्कूटी का मॉन्युअल उबाऊ अंग्रेजी में तकनीकी ढंग से लिखा है। तुम घण्टा न पढ़ने वाले।

गलती से पढ़ लिया, दो सवाल किए तो स्कूटी देवी का अपमान बताकर आपको धर्म विरोधी साबित कर दिया जायेगा

धर्म मे बदलाव सम्भव नही। मारपीट हो जाएगी। दर्शन का अपग्रेड सम्भव है। जैसे कि यह स्कूटी पेट्रोल वाली नही है। यह तो बैटरी से चलने वाली स्कूटी है।

लो भईया। अब नए सिरे से दर्शन लिखो।

बैटरी, चार्जिंग, एसी, डीसी, बैटरी का पानी, उसका टाइमली रिप्लेसमेंट, वगैरह वगैरह। बाकी संतुलन, हेडलाइट वाली बात पुरानी रहेगी।

कुछ मिस्त्री, जो पेट्रोल वाली स्कूटी देवी का प्रवचन करते थे , वो अब बदलने को तैयार नही। उनका पूरा धंधा इंजन वाली स्कूटी से चलता है। परन्तु कुछ ओशो टाइप बाबा अपडेट कर जाते है। वो बिजली वाली स्कूटी को भी धर्म का हिस्सा मानने को तैयार हैं। असल मे उनका धंधा उस पर आधारित है।

धर्म दर्शन से पैदा होता है। दर्शन अपडेट होता रहता है। उसे धर्म बनाकर फ़ायदा कराने वाले उसके किसी पुराने वर्जन पर टिके रहते हैं।

इससे सम्प्रदाय बन जाते है। पेट्रोल वाली स्कूटी देवी का सम्प्रदाय और बिजली वाली स्कूटी देवी का सम्प्रदाय वैसे ही है जैसे शिया या सुन्नी, हीनयान या महायान, श्वेताम्बर- दिगंबर..

ये आपस मे लड़ते हैं। मगर फिर सामने कार देव के धर्मावलंबी आ जाते है। दोनो मिलकर उनसे लड़ते हैं।

उधर कार धर्म वाले डीजल कार और पेट्रोल कार के विषय पर आपस मे लड़ रहे हैं। सिडान और एसयूवी सेक्ट वालों में मतभेद है। दंगा वंगा हो जाता है।

इतने में पॉलिटिशियन आता है। कहता है हमको वोट करो। हम सारे स्कूटी वालो को सड़कों से हटा देंगे। सारे डीजल पेट्रोल, सिडान, एसयुवी गर्व से कहो हम कार-वान हैं। हम कार वाले सड़को पर राज करेंगे।

●●●

दुनिया में दर्शन / फिलॉसफी का सबसे शानदार दौर ईसा के 400 साल पहले का है।

तब फिलॉसफी में ग्रीस विश्वगुरु बनकर उभरा। सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, थेल्स, डायोनिसिस, हेरोकलिट्स, पाइथागोरस इस दौर में हुए।

ये कुछ सौ साल, विचारकों के स्वर्णयुग थे। इनके विचार, बहस का हिस्सा बने। काटे, जोड़े, इम्प्रूव किये गए, औऱ प्राचीन ग्रीस का दर्शन, आज पश्चिमी फिलॉसफी का बेडरॉक है।

इसी समय, भारत मे भी दर्शन आये। सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व- उत्तर मीमांसा को वैदिक दर्शन माना गया। इसके साथ जैन, बौद्ध और चार्वाक दर्शन आये।

हम इन्हें आस्तिक और नास्तिक दर्शनों के रूप में विभाजित करते हैं। इतने दर्शन इसी दौर में क्यों बने। इसके बाद क्यो न आये।

क्या समाज की बुद्धि थम गई??

●●

इसका कारण, धर्म की सत्ता, मजबूत होने से मिलता है। पंथ तब छोटे थे, बहुतेरे थे, पुजारियों पण्डो का एकाधिकार न था। सवाल और जवाब का अविष्कार होता।

दर्शन का अर्थ है-देखना। आप विश्व को देखते कैसे हैं, दृष्टिकोण क्या है, कैसे आप घटनाओं, रिश्तों, समाज और व्यक्ति के जीवन का अर्थ समझते है। यह दर्शन हुआ।

फिलोसोफी का मलतब और गहरा है। फीलो याने प्रेम, सॉफी याने -ज्ञान !! ज्ञान के प्रति प्रेम ही फिलोसफी है। जो ज्ञान को खोज रहा हो, फिलॉसफर है। दृष्टि, और ज्ञान की खोज तब तक चली जब तक धर्म ने बन्दिशें न लगा दी।

भारत में दर्शन को सीधे सीधे धर्म से जोड़ लिया गया। हिन्दू दर्शन, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन.. ये सारे दर्शन, जो आजाद मनुष्य के विचार थे, एक एक पंथ के “कैप्टिव दर्शन” हो गए।

दरअसल भारत में धर्म और दर्शन ऐसे लट्ट-पट्ट हैं कि आधे से ज्यादा पाठकों को यह समझना कठिन है, कि धर्म व दर्शन अलहदा कैसे हो सकते हैं। यहाँ हिन्दू धर्म, वैदिक दर्शन है, और बौद्ध धर्म ही बौद्ध दर्शन..

●●

पश्चिम में कुछ अलग हुआ। वहाँ धर्म औऱ दर्शन अलग अलग रहे।चर्च ने अपना नजरिया लिखा- बाइबल। सारे सवालो के जवाब लिख दिए। अब बाकी सारे दर्शन खारिज।

कोई सवाल नही, अलग नजरिया नही। बाइबल के जवाबों पर शुब्हा न किया जाए। किया तो आप पापी, धर्मद्रोही, शैतान हो। न मानने पर चर्च जिंदा जलवा सकता था।

तो पहली सदी के बाद ही सोच पर पहरे, बुद्धि पर ताला लगा दिया गया। तो दर्शन का विकास खत्म। इंसानी समाज मे ज्ञान की खोज, याने फिलॉसफी का स्पेस खत्म।

विज्डम जो थमा,

तो डेढ़ हजार साल थमा रहा।

●●

सोलहवीं सदी तक अंधकार युग के बाद जो हुआ, उसे पुनर्जागरण कहते हैं। मार्टिन लूथर ने शुरआत की। बाइबिल की धारणाओं पर सवाल किए।

कोपरनिकस और गैलीलियो ने किए। बताया धरती गोल है, चांद सितारे बेजान हैं। उन्होंने इसकी सज़ा भुगती। लेकिन धर्म के प्रति अंध श्रद्धा का दौर जा रहा था।

नवयुग आ रहा था। बाइबिल की जेनेसिस को ऑर्गेनिक इवोल्यूशन ने झुठलाया। धरती चांद सितारे, ईश्वर की मर्जी से नही, न्यूटन और आइंस्टीन के सिद्धातों पर चलने लगे। डार्विन ने बन्दर को मनुष्य का पूर्वज बना डाला।

हर चीज पर सवाल करना, डाउट करना, उसके कारण को खोजना- एक अभियान हो गया।

विज्ञान हो गया।

●●

जब यूरोप ने धर्म की जकड़न को तोड़ा, तो विज्ञान का विकास हुआ। तब जाकर पिछले 300 सालों में वे अविष्कार हुए, जो 1500 साल में हो जाने चाहिए थे।

दैनिक जीवन मे विज्ञान आया, दवाइयां बनी, संचार आसान हुआ, कार बनी, विमान बने, टीवी रेडियो, बिजली… आधुनिक संसार का निर्माण हुआ।

पर भारत धर्म की जकड़न से आज तक नही निकला।

●●

क्या ही विडंबना है कि आजादी का पहला ग़दर, इस डर से हुआ कि कारतूसों की चर्बी हमारा धर्म भ्रस्ट हो जायेगा??

हम भले कहें, कि विमान से लेकर सर्जरी, एटॉमिक स्ट्रक्चर से लेकर परमाणु बम, हम वैदिक काल मे हासिल कर चुके थे। ये सिवाय आत्मप्रवंचना के कुछ नही। आप वेद पढ़कर बल्ब नही बना सकते। वेंटिलेटर, या एक्सरे मशीन नही बना सकते।

आप सिर्फ, मानव के, अपने खुद के समाज के बौद्धिक विकास पर ताला लगा सकते हैं। दुनिया से अलहदा राह पर, दौड़ सकते हैं, जहां पत्ता ईश्वर की मर्जी से खड़कता है। जहां ब्राह्मण मुख और शूद्र, ब्रह्मा के पैरों से पैदा होता है।

देश की लीडरशिप, समाज औऱ राजनीति, जब पंथ की स्थापना का बीड़ा उठाती है, तो उसी अंधकार युग मे ले जाती है, जिससे मुश्किल से हाथ पांव मारकर हम निकलकर आये थे।

●●

2000 साल बाद तो समाज ऐसा बने, जो नए नजरिये को स्पेस दे। पुरानी धारणाओं को चैलेंज करने दे, शुब्हा करने दे, नए जवाब खोजने की आजादी दे।

हम जिस दोराहे पर हैं, वहां जरूरत यही है, कि जिस सत्य को खोजकर इंसान फिलॉसफर कहलाता है, उस मार्ग के कांटे हटाये जायें। पंथ को,मन्दिर, मस्जिद, चर्च को भले ही प्रणाम किया जाये,पर यात्रा वहां जाकर खत्म न जाये।

वहां से शुरू की जाये।

--

--

Nitesh Kumar Patel

The man who writes about himself and his own time is the only man who writes about all people and all time. — George Bernard Shaw