गुलमोहर
बनारस से पहली बार कही बाहर जा रहा था तो पापा स्टेशन तक छोड़ने आये। यात्रीगण कृपया ध्यान दे के अलावा सामान से लेकर स्वयंसूरक्षा तक की सारी गाइड लाइन उन्होंने एक सास में बता डाली। मै बस उनकी आँखों को देख रहा था जो किसी बांध की भाँति एक सागर को अपने पीछे रोके हुए थी। ट्रेन चलने का समय आया तो पापा उतर गए। उनकी आंखे अपने छोटे बेटे को ओझल होने की हद तक देखती रही।
आरएसी-2 होने के बावजूद टिकट कन्फ़र्म नहीं हुआ था। साथी पैसेंजर कैसा होगा की चिंता, आगामी बारह घंटे की यात्रा से ज़्यादा परेशान कर रही थी। बहरहाल,अगले स्टेशन पर वे भी आ गए । साथी पैसेंजर अच्छा मिला तो चिंता दूर हुई। एक ही बर्थ पर अपने-अपने हिस्से में आराम खोजते हुए हमने बातचीत शुरू की। वह रिटायर्ड आर्मी जवान थे और देश की महँगाई से परेशान थे। देश की अवस्था से ज़्यादा अब उन्हें पानी के बोतलों में बिकने से परेशानी थी।
उन्होंने मेरे चेहरे पर मायूसी लक्ष्य करते हुए पूछा कि मुझे बैठने में कोई तकलीफ़ तो नहीं है? जवाब में मैंने उन्हें अपनी उस नदी के बारे में बताया, जो हर जाने वाले को अपनी तकलीफ़ छुपाकर उत्साह से विदा करती है। उन्होंने उत्साहित होकर कहा — ‘‘अच्छा! आपके गाँव में नदी है?’’ मैंने उन्हें बताया कि नदी के किनारे ही हमारा गाँव है जो चारों तरफ़ बगीचों से घिरा है। पूरा गांव इस मौसम में गुलमोहर के फूलों से लाल नज़र आता हैं।
‘‘फिर तो बहुत तकलीफ़ होती होगी आपको यहाँ से जाने में…’’ — उन्होंने कहा। ‘‘हाँ, होती है।’’ खिड़की से छूटती पगडंडियों को देखते हुए ही कहा मैंने — ‘‘वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए, जहाँ से जाते हुए तकलीफ़ न हो।’’
शाम हुई , हम दोनों ने डिनर करना शुरू किया । बातो बातो में पता चला अंकल अभी पिछले महीने ही रिटायर्ड हुए है। उनकी पत्नी का दो वर्ष पहले एक्सीडेंट हो गया था। अब वे घर में अकेले रहते है। “आपके बेटे क्या करते है? मैंने पूछा। उन्होंने बताया कि उनके दो बेटे है, दोनों ही बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते है। बड़ा बेटा बैंगलोर और छोटा बेटा दिल्ली में रहता है।
आप उनके पास क्यों नहीं रहते ? मैंने डरते हुए पूछा। “पिछले महीने ही आया हूँ”, खिड़की से बाहर सितारों को देखते हुए अंकल ने कहा — “वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए जहा से जाने पर किसी को तकलीफ ना हो।”
रात के १० बज गए थे मैंने अंकल को इंसिस्ट किया कि आप सो जाओ , मै कल हॉस्टल में अपनी नींद पूरी कर लूंगा। अंकल सो गए , मै ध्यान से उनके आँखों और चेहरे को देख रहा था। उनके सोते हुए शांत चेहरे पर भी मुस्कान थी। उनके चेहरे कि लाल झुर्रिया गुलमोहर के सूखे फूलो कि भाँती लग रही थी। मै उन्हें ध्यान से देखते हुए गुनगुना रहा था -
जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए
— दुष्यंत कुमार