आई.आई.टी. में गुलाब
गुलाब
गुलाब को बहुत ज़माने पहले
हम एक फूल समझते थे
एक फूल जो हमारे हिस्से में नहीं था
हम किसान के बेटे थे
हमारे पास सरसों के फूल थे
सहजन के फूल थे
लौकी और कुम्हड़े के फूल थे
यहाँ तक कि कई तरह की घासों के भी फूल थे
हमने फ़िल्मों में देखे गुलाब
उन्हें खिलते हुए नहीं
एक गुलाबी-सी लड़की को
एक ग़रीब और साँवले रंग के लड़के द्वारा
लाल चेहरे और काँपते हाथों से देते हुए
हमने अपनी कॉपियों में गुलाब के फूल नहीं
मोर के पंख रखे
खिलाया उन्हें पिनसिन का भूरा
कि वे एक से दो और दो से चार हो जाएँ||
आई.आई.टी
हम गँवई किसान के बेटे
गिरते थमते IIT आ गये
हम यहाँ टॉपर बनने के लिए नहीं आए थे
न हमें मेडल का वरदान चाहिए था
हम ऐसे भी नहीं थे
न कभी ऐसा होना चाहते थे
कि हमारा इतिहास लिखा जाए
हमारे सपने बहुत छोटे थे
हम हँसना चाहते थे
प्यार करना चाहते थे टूटकर
दोस्ती करना चाहते थे
हमें चहिए थी आज़ादी इतनी
कि हम रो सकें
हम नहीं बनना चाहते थे महापुरुष
हमारा बस इतना ही महत्त्व था
कि हम उन गँवई रास्तों
और संघर्षों की याद दिलाते थे
जिनके निशान हमारे माथे पर
अनपढ़ गवार की मुहर की तरह
सदियों से छपे थे।